Indian History : शिशुनाग वंश (Shishunaga Dynasty)

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शिशुनाग वंश (Shishunaga Dynasty)

शिशुनाग वंश (लगभग 412 ईसा पूर्व – 345 ईसा पूर्व) मगध साम्राज्य का दूसरा प्रमुख राजवंश था, जिसने हर्यंक वंश के बाद सत्ता संभाली और नंद वंश के उदय तक शासन किया। इस वंश ने मगध के विस्तार और शक्ति को और अधिक सुदृढ़ किया। हर्यंक वंश के अंतिम शासक नागदशक एक कमजोर शासक थे। उनके अमात्य (मंत्री) शिशुनाग ने 412 ईसा पूर्व में उन्हें सिंहासन से हटा दिया और मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना की।

शिशुनाग वंश के प्रमुख शासक

• शिशुनाग वंश में मुख्यतः तीन महत्वपूर्ण शासक हुए –

1) शिशुनाग (लगभग 412 ईसा पूर्व – 394 ईसा पूर्व)
• इन्हें शिशुनाग वंश का संस्थापक माना जाता है।
• उन्होंने हर्यंक वंश के अंतिम शासक नागदशक की हत्या कर गद्दी प्राप्त की।
• इनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि अवन्ति राज्य पर विजय थी। अवन्ति (जिसकी राजधानी उज्जैन थी) मगध का एक शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी था और दोनों के बीच लगभग 100 वर्षों से प्रतिद्वंद्विता चल रही थी। शिशुनाग ने अवन्ति को जीतकर मगध में मिला लिया, जिससे मगध की पश्चिमी सीमा मालवा तक फैल गई।
• उन्होंने वत्स को भी मगध में मिलाया।
• शिशुनाग ने अपनी राजधानी गिरिव्रज (राजगृह) के साथ-साथ वैशाली को भी एक महत्वपूर्ण राजधानी के रूप में विकसित किया।
• उनके शासनकाल में मगध का साम्राज्य बंगाल से लेकर मालवा तक फैल गया।

2) कालाशोक / काकवर्ण (लगभग 394 ईसा पूर्व – 366 ईसा पूर्व)
• कालाशोक शिशुनाग के पुत्र और उत्तराधिकारी थे।
• इन्हें बौद्ध ग्रंथों में काकवर्ण के नाम से भी जाना जाता है।
• इनके शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन था, जो 383 ईसा पूर्व में वैशाली में हुई थी। इस संगीति में बौद्ध संघ में स्थविरवादी और महासांघिक जैसे मतभेदों के बीज पड़े।
• कालाशोक ने अपनी राजधानी को वैशाली से पुनः पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया, जो हर्यंक शासक उदयिन द्वारा स्थापित की गई थी। पाटलिपुत्र की रणनीतिक स्थिति मगध के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण थी।

3) नंदिवर्धन / महानंदिन (लगभग 366 ईसा पूर्व – 345 ईसा पूर्व)
• नंदिवर्धन शिशुनाग वंश के अंतिम शासक थे।
• इन्हें पुराणों में महानंदिन कहा गया है।
• उनके शासनकाल में साम्राज्य में कुछ स्थिरता रही, लेकिन वे उतने शक्तिशाली नहीं थे जितने उनके पूर्वज थे।

शिशुनाग वंश का महत्व और पतन

i) क्षेत्रीय विस्तार :- शिशुनाग वंश ने मगध के क्षेत्रीय विस्तार को जारी रखा, विशेषकर अवन्ति जैसे शक्तिशाली राज्य को मगध में मिलाकर इसने मगध को और अधिक मजबूत बनाया।
ii) सामरिक महत्व :- वैशाली और पाटलिपुत्र जैसी राजधानियों का उपयोग और विकास, मगध की रणनीतिक और व्यापारिक स्थिति को दर्शाता है।
iii) धार्मिक योगदान :- कालाशोक के शासनकाल में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन बौद्ध धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी।

शिशुनाग वंश का अंत नंदिवर्धन के शासनकाल में हुआ। उनके एक पुत्र या किसी अन्य व्यक्ति, जिसे महापद्मनंद के नाम से जाना जाता है, ने नंदिवर्धन को सत्ता से हटाकर नंद वंश की स्थापना की। महापद्मनंद ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया और भारतीय इतिहास में एक नए, अधिक शक्तिशाली युग की शुरुआत की।

• शिशुनाग वंश का संस्थापक कौन था ? उत्तर — शिशुनाग
• शिशुनाग किसका पुत्र था ? उत्तर — नगरवधु (वेश्या)
• गिरिव्रज के अतिरिक्त वैशाली नगर को किसने अपनी दूसरी राजधानी बनाई थी ? उत्तर — शिशुनाग ने
• शिशुनाग ने किस राज पर अधिकार कर उसे मगध साम्राज्य में मिलाया था ? उत्तर — अंवति तथा वत्स
• शिशुनाग के पश्चात शिशुनाग वंश का शासक कौन बना था ? उत्तर — कालाशोक (पुराणों में काकवर्ण कहा गया है)
• कालाशोक ने किसे अपना राजधानी बनाया था ? उत्तर — पाटलिपुत्र को
• कालाशोक के काल में किस बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था ? उत्तर — द्वितीय
• शिशुनाग वंश का अंतिम शासक कौन था ? उत्तर — नंदीवर्मन
• नंदीवर्मन की हत्या किसने कर दी थी ? उत्तर — महापद्म नंद ने

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