Indian History : वाकाटक वंश (The Vakataka Dynasty)

Indian History : प्रिय विद्यार्थियों, “Mindbloom Study” (#1 Online Study Portal) आपके लिए लाया है “वाकाटक वंश (The Vakataka Dynasty)”

वाकाटक वंश (The Vakataka Dynasty)

वाकाटक वंश प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण राजवंश था जिसने तीसरी शताब्दी ईस्वी के मध्य से छठी शताब्दी ईस्वी तक दक्कन और मध्य भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया। यह राजवंश सातवाहनों के पतन के बाद प्रमुखता से उभरा और गुप्त साम्राज्य के समकालीन रहा।

वाकाटक वंश का उद्भव और विस्तार
वाकाटक वंश की स्थापना लगभग 250 ईस्वी में विंध्यशक्ति ने की थी। माना जाता है कि वे विष्णुवृद्धि गोत्र के ब्राह्मण थे और उनका मूल निवास स्थान विदर्भ (आधुनिक महाराष्ट्र का बरार क्षेत्र) था। वाकाटक साम्राज्य उत्तर में मालवा और गुजरात के दक्षिणी किनारों से लेकर दक्षिण में तुंगभद्रा नदी तक, और पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में छत्तीसगढ़ के किनारों तक फैला हुआ था।

गुप्तों से संबंध
वाकाटकों ने उत्तरी भारत के शक्तिशाली गुप्त साम्राज्य के साथ घनिष्ठ वैवाहिक संबंध स्थापित किए। गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी बेटी प्रभावतीगुप्त का विवाह वाकाटक राजकुमार रुद्रसेन द्वितीय से किया था। इस संबंध ने दोनों साम्राज्यों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और अपेक्षाकृत शांति का दौर सुनिश्चित किया।

प्रमुख शासक और उनका योगदान
• वाकाटक वंश को मुख्य रूप से दो शाखाओं में विभाजित किया गया है –

प्रवरपुर-नंदीवर्धन शाखा के प्रमुख शासक
i) विंध्यशक्ति (लगभग 250-270 ई.) :- इन्हें वाकाटक वंश का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने विदर्भ क्षेत्र में अपना शासन स्थापित किया।
ii) प्रवरसेन प्रथम (लगभग 270-330 ई.) :- विंध्यशक्ति के पुत्र और उत्तराधिकारी, प्रवरसेन प्रथम ही एकमात्र वाकाटक शासक थे जिन्होंने “सम्राट” की उपाधि धारण की। उन्होंने अपने शासनकाल में चार अश्वमेध यज्ञ सहित कई वैदिक यज्ञ किए और वाकाटक साम्राज्य का विस्तार किया। उनके समय में राज्य बुंदेलखंड से लेकर दक्षिण में हैदराबाद तक फैल चुका था।
iii) रुद्रसेन द्वितीय (लगभग 380-385 ई.) :- इनका विवाह गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावतीगुप्त से हुआ था, जिससे गुप्त-वाकाटक संबंधों में मजबूती आई।
iv) प्रभावतीगुप्त (राज-प्रतिनिधि 385-405 ई.) :- अपने पति रुद्रसेन द्वितीय की असामयिक मृत्यु के बाद, उन्होंने अपने अल्पायु पुत्रों की संरक्षिका के रूप में शासन किया। उनके शासनकाल में गुप्तों का प्रभाव वाकाटक राज्य पर बढ़ा।
v) दामोदरसेन (प्रवरसेन द्वितीय) (लगभग 400-440 ई.) :- ये प्रभावतीगुप्त के पुत्र थे। उन्होंने प्रवरपुर नामक राजधानी की स्थापना की और प्राकृत काव्य “सेतुबंध” (जिसे “रावणवहो” भी कहते हैं) की रचना की।
vi) पृथ्वीसेन द्वितीय (लगभग 460-480 ई.) :- इन्हें वाकाटक वंश के “खोए हुए भाग्य का निर्माता” कहा जाता है।

वत्सगुल्मा शाखा के प्रमुख शासक
i) सर्वसेन :- ये प्रवरसेन प्रथम के पुत्र थे और वत्सगुल्मा शाखा के संस्थापक थे। उन्होंने “धर्ममहाराज” की उपाधि धारण की और प्राकृत ग्रंथ “हरिविजय” के कुछ अंशों की रचना की।
ii) हरिषेण :- ये वत्सगुल्मा शाखा के एक महत्वपूर्ण शासक थे जिनके समय में वाकाटक साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था। अजंता के अभिलेखों में उन्हें कुंतल, अवंती, लाट, कोशल, कलिंग और आंध्र देशों का विजेता बताया गया है। अजंता गुफाओं में कई बौद्ध चैत्य और विहार उनके संरक्षण में बने थे।

सांस्कृतिक और स्थापत्य कला में योगदान
वाकाटक शासक कला, वास्तुकला और साहित्य के महान संरक्षक थे। उनके शासनकाल में भारतीय कला और संस्कृति का उल्लेखनीय विकास हुआ ।
i) अजंता गुफाएँ :- अजंता की प्रसिद्ध चट्टान-कटी बौद्ध गुफाओं (विशेषकर गुफा संख्या 16 और 17 के विहार और गुफा संख्या 19 का चैत्य) का निर्माण और चित्रकला का दूसरा चरण वाकाटक काल से संबंधित है, खासकर राजा हरिषेण के संरक्षण में। यहाँ बुद्ध के जीवन चरित्र और जातक कथाओं का सुंदर चित्रांकन मिलता है।
ii) साहित्य :- वाकाटक शासकों ने संस्कृत और प्राकृत भाषाओं को प्रोत्साहन दिया। प्रवरसेन द्वितीय ने “सेतुबंध” और सर्वसेन ने “हरिविजय” जैसे प्राकृत काव्यों की रचना की। इस काल में “वैदर्भी शैली” की प्राकृत काव्य रचनाएं लोकप्रिय हुईं।
iii) धार्मिक संरक्षण :- वाकाटक नरेश ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने कई वैदिक यज्ञ (जैसे अश्वमेध, वाजपेय) किए। वे “परममाहेश्वर” और “परम भागवत” जैसी उपाधियां धारण करते थे। हालांकि, उन्होंने बौद्ध धर्म को भी संरक्षण दिया, जैसा कि अजंता की गुफाओं से स्पष्ट होता है।
iv) वास्तुकला :- वाकाटक काल में पत्थरों और ईंटों से मंदिर बनाने की प्रथा प्रचलित हुई। नाचना का मंदिर इसी युग में निर्मित हुआ था और उदयगिरि, देवगढ़ और अजंता में गुहा-निर्माण पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है।

वाकाटक वंश का पतन
छठी शताब्दी ईस्वी के आसपास, वाकाटक साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा। हरिषेण के उत्तराधिकारियों की निर्बलता के कारण कलचुरि और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के उदय से वाकाटक वंश का अंत हो गया।

One Liner Objectives

• सातवाहन वंश के अंत के बाद उनके क्षेत्र पर किस वंश का आगमन हुआ था ? उत्तर — वाकाटक वंश
• वाकाटक के पूर्वज किसके सामंत थे ? उत्तर — सातवाहनों के
• वाकाटक की राजधानी कहाँ थी ? उत्तर — बरार (विदर्भ)
• संस्कृत की वैदर्भी शैली का पूर्ण विकास किन शासकों के दरबार में हुआ था ? उत्तर — वाकाटक
• कालीदास ने ‘मेघदूत’ ग्रंथ की रचना किस शैली में की थी ? उत्तर — वैदर्भी
• वाकाटक किस धर्म को मानते थे ? उत्तर — ब्राह्मण धर्म ( शैव संप्रदाय )
• वाकाटक शासक कैसी उपाधियाँ धारण करते थे ? उत्तर — ‘परममाहेश्वर’ तथा ‘परमभागवत’
• वाकाटक राजवंश किस राजवंश के समकालीन थे ? उत्तर — गुप्त राजवंश
• वाकाटक वंश के संस्थापक कौन थे ? उत्तर — विन्ध्य शक्ति (255-275 CE)
• विन्ध्य शक्ति के बाद वाकाटक साम्राज्य का शासक कौन बना था ? उत्तर — प्रवरसेन I (275-335 CE)
• वाकाटक राजवंश का वह कौन-सा शासक था जिसने “सम्राट” की उपाधि धारण की थी ? उत्तर — प्रवरसेन I
• पुराणों के अनुसार प्रवरसेन I ने कुल कितने अश्वमेध यज्ञ किए थे ? उत्तर — चार
• गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह वाकाटक वंश के किस शासक के साथ हुआ था ? उत्तर — रुद्रसेन II
• वाकाटक शासन प्रवरसेन II ने किस ग्रंथ की रचना की थी ? उत्तर — सेतुबंध
• अजन्ता की सोलहवीं गुफा से प्राप्त लेख में वाकाटक वंश के किस शाखा का विवरण मिलता है ? उत्तर — बासीम शाखा
• वाकाटक बासीम शाखा का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा कौन हुआ था ? उत्तर — हरिषेण
• वाकाटक वंश का अंतिम ज्ञात शासक कौन था ? उत्तर — हरिषेण ( मृत्यु 550 CE में )
• वाकाटक साम्राज्य के पतन के पश्चात उनके स्थान पर किस राजवंश ने अपना साम्राज्य स्थापित किया था ? उत्तर — चालुक्य

– : समाप्त : –

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