Class 9th भूगोल अध्याय 5 “जलवायु (Climate)”

Bihar Board Class 9th Geography : प्रिय विद्यार्थीयों, “Mindbloom Study” (#1 Online Study Portal For Bihar Board Exams) आपके लिए लाया है बिहार बोर्ड Class 9th भूगोल अध्याय 5 “जलवायु (Climate)” का Objective & Subjective Answer Question

जलवायु (Climate)

मौसम (Weather)

• किसी क्षेत्र या स्थान के खास समय में वायुमंडलीय दशाओं को मौसम कहा जाता है।
• मौसम समय तथा स्थान के अनुसार परिवर्तित होता रहता है।

मौसम की प्रमुख परिस्थितियाँ

i) मेघाच्छादन (Cloudy)
ii) आर्द्र (Humid)
iii) उमस वाला (Sultry)
iv) वर्षायुक्त (Rainy)
v) वायूढ़ (Windy)
vi) धूपयुक्त (Sunny)

जलवायु (Climate)

• किसी विस्तृत क्षेत्र में वर्ष की विभिन्न ऋतुओं की औसत मौसम दशाओं को उस क्षेत्र की जलवायु कहते हैं।
• किसी प्रदेश की जलवायु अपेक्षाकृत स्थायी होती है। जैसे भारत की जलवायु समुच्चय तौर पर मानसूनी है।
• मौसम एक दिन में कई बार बदल सकते हैं किंतु जलवायु सालों-साल एक क्षेत्र में एक ही रहती है।

मौसम तथा जलवायु के तत्व (Elements of Weather And Climate)

• मौसम तथा जलवायु के मुख्य तत्व – तापमान, वायुदाब, पवन, आर्द्रता तथा वर्षण है जो सूर्यातप से प्रभावित होकर बदलते रहते हैं।
• सूर्य से पृथ्वी तक पहुंचने वाले सौर विकिरण ऊर्जा को सूर्यातप (insolation) कहते है।

तापमान (Temperature)

• वायुमंडल में संवेद्य ऊष्मा या ठंड की मात्रा को तापमान कहते हैं।
• किसी स्थान का तापमान कई कारकों पर निर्भर करता है जिनमें भूमध्य रेखा से दूरी, समुद्र तल से ऊँचाई, समुद्र तट से दूरी, समुद्री धाराएँ, प्रचलित पवनें, भूमि की ढाल तथा वर्षा प्रमुख हैं।
• वायु के तापमान को मापने के लिए तापमापी यंत्र (Thermometer) का प्रयोग किया जाता है।
• वायु की दिशा वायु दिक्-सूचक यंत्र (Wind Vane) से तथा उसकी गति पवन वेगमापी (Anemometer) से जानी जाती हैं।

वायुदाब (Air Pressure)

• वायुमंडल की वायु में भार होता है जिससे वायुदाब उत्पन्न होता है।
• दो स्थानों के बीच वायुदाब में अंतर होने से वायु उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र से निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर पवन के रूप में प्रवाहित होती है।
• वायुदाब को मापने के लिए वायुदाबमापी यंत्र (Barometer) का प्रयोग किया जाता है।

पवन (Wind)

• जब वायु एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर चलती है तो यह पवन कहलाती है।
• पवनें सदा उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र से निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर चलती है।
• विश्व की प्रचलित पवनों में व्यापारिक पवनें, पछुआ पवनें, मानसून पवनें इत्यादि शामिल हैं।

जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Climate)

1. अंक्षाश अथवा विषुवत रेखा से दूरी (Latitude) :- विषुवत रेखा के निकटवर्ती स्थान, दूरस्थ स्थानों की अपेक्षा अधिक गर्म होते हैं।
• उष्णकटिबंध (Tropical or Torrid Zone)
• शीतोष्ण कटिबंध (Temperate Zone)
• शीत कटिबंध (Frigid Zone)
2. समुद्र तल से ऊँचाई (Altitude) :- तापमान ऊँचाई बढ़ने के साथ घटता जाता है। प्रत्येक 165 m ऊँचाई पर औसतन 1° C तापमान कम हो जाता है।
3. समुद्र से निकटता (Nearness From Sea) :- पानी गर्मी का कुचालक है अर्थात यह बहुत देर में गर्म होता है और बहुत देर में ठंडा होता है। समुद्र के इस समकारी प्रभाव के कारण तट के निकट के स्थानों का ताप परिसर कम और आर्द्रता अधिक होती है।
• समुद्र के नजदीक वाले भूभाग में सम तथा समुद्र से दूर के भूभाग में विषम जलवायु पायी जाती है।
4. पवन की दिशा (Direction of wind) :- समुद्र की ओर से आने वाली पवनें (अभितट पवनें) नमी से युक्त होती है और वे अपने मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में वर्षा करती है। परंतु स्थलभाग से आनेवाले पवनें शुष्क होती है और वे वाष्पीकरण में सहायक होती है।
5. वन (Forest) :- वन बादल को आकर्षित करता है तथा सूर्य के प्रखर किरणों से बचाता है।
6. समुद्री जलधाराएँ (Ocean Current) :- समुद्री जल में तापमान और धनत्व की समानता बनाए रखने में समुद्र का जल एक स्थान से दूसरे स्थान को गतिमान रहता है। गर्म धाराएँ तटवर्ती भागों के तापमान को बढ़ाकर कभी-कभी वर्षा में सहायक होती है, जबकि ठंडी धाराएँ तटवर्ती भागों का तापमान कम कर कोहरा उत्पन्न करती है।
7. वर्षा (Rainfall) :- वर्षा होने से तापमान कम और आर्द्रता अधिक हो जाती है। भारत में वर्षा को हम मिलीमीटर या सेंटीमीटर में मापते हैं।
8. पर्वतमालाओं की स्थिति (Mountain) :- ऊंचे पर्वत वाष्प युक्त पवन को रोककर वर्षा करता है जिससे पवनाभिमुख भाग में मूसलाधार पर्वतीय वर्षा होती है पर पर्वत के पीछे वाला पवनोविमुख भाग वर्षा से वंचित रह जाता है जिसे वृष्टि छाया प्रदेश कहा जाता है।
9. मिट्टी की प्रकृति (Soil) :- पथरीली या रेतीली मिट्टी जल्द गर्म हो जाती है जबकि काली चिकनी मिट्टी जल्द गर्म नहीं हो पाती है।

कोरिओलिस बल (Coriolis force)

• पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिओलिस बल कहते है। इस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्ध में दाहिने ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाईं ओर विक्षेपित हो जाती है। इसे ‘फेरल के नियम’ के रूप में भी जाना जाता है।

एल निनो और ला निना (El Nino And La Nina)

एल निनो

• एल निनो स्पेनिश शब्द है जिसका अर्थ शिशु होता है।
• एल निनो एक गर्म जलधारा है जो दक्षिण अमेरिका के पेरू एवं इक्वेडोर देशों के प्रशांत तटीय भाग में 3 से 7 वर्ष के अंतराल पर उत्पन्न होती है।
• एल निनो से उतरी भारत में सामान्य से कम वर्षा होती है तथा सूखे की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

ला निना

• ला निना की उत्पत्ति भी कभी-कभी पेरू तट पर होती है। यह एक ठंडी जलधारा है।
• ला निना से भारत में सामान्य से अधिक वर्षा होती है तथा बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसके कारण ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण पूर्वी एशिया तथा चीन में भी भारी वर्षा होती है।

भारतीय मानसून (Indian Monsoon)

• विश्व के सभी प्रकार की जलवायु भारत में पाई जाती है।
• हमारे देश में उष्ण मानसूनी जलवायु पायी जाती है।
• मानसून शब्द अरबी शब्द ‘मौसिम’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है मौसम या ऋतु
• मॉनसून शब्द का उपयोग सर्वप्रथम अरब के नाविक अरब सागर में चलने वाली उन हवाओं के लिए किया करते थे जो ऋतु बदलते ही अपनी दिशा भी बदल लेते थे।
• भारत में बोलचाल (colloquially) की भाषा में मानसून का अर्थ वर्षा से है अच्छा मानसून का अर्थ अच्छी वर्षा से है।
• भारत में इन हवाओं की दिशा 6 माह दक्षिण-पश्चिम और 6 माह उत्तर-पूर्वी रहती है। अतः इन्हें क्रमशः दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा उत्तरी-पूर्वी मानसून कहा जाता है।
• दक्षिण-पश्चिमी मानसून जिन क्षेत्रों को खाली करता है वहाँ उत्तरी-पूर्वी मानसून अपने प्रभाव में ले लेती है।
• उत्तर-पूर्वी मानसून का काल मध्य नवंबर से मध्य मार्च तक प्रभावी रहता है। इससे भारत के दक्षिणी तटीय भाग में कहीं-कहीं वर्षा होती है।
• दक्षिण-पश्चिमी मानसून केरल तट पर 1 जून को पहुंचता है और शीघ्र ही 13 से 15 जून तक मुंबई एवं कोलकाता होते हुए मध्य जुलाई तक संपूर्ण भारत में फैल जाता है।
• मानसूनी हवाओं के मार्ग में यदि कोई पर्वत अवरोध बनता है तो वहाँ ये ऊपर उठकर घनीभूत हो जाते हैं जिससे भारी वर्षा होती है।
• दक्षिण-पश्चिमी मानसून 15 नवंबर तक पूरे भारत को छोड़ देता है तब इसे लौटती मानसून कहते हैं।

मानसून का स्वभाव

• दक्षिण पश्चिमी मानसून की वर्षा मौसमी है जो जून से सितंबर तक होती है।
• समुद्र से दूरी बढ़ने पर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
• मानसून वर्षा भू-आकृति द्वारा नियंत्रित होती है।
• भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में मानसून का महत्वपूर्ण योगदान है।
• मानसूनी वर्षा का भारत में वितरण भी असमान हैं।
• मानसून कभी पहले और कभी देर से आती है, कभी अतिवृष्टि एवं कभी अनावृष्टि लाती है।

वर्षा एवं उसके प्रकार

• भारत में ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन दोनों वर्षा होती है।
1. ग्रीष्मकालीन वर्षा (Summer Rainfall) :– भारत में ग्रीष्मकालीन वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून हवा से होती है।
2. शीतकालीन वर्षा (Winter Rainfall) :– भारत में शीतकालीन वर्षा लौटती मानसून तथा उत्तरी-पूर्वी मानसून से भारत के पूर्वी तटीय भाग, तमिलनाडु तथा केरल में वर्षा होती है।

ऋतुएँ (Seasons)

• भारत में कुल छः ऋतुएँ पाई जाती है जो अन्य किसी देश में दुर्लभ है।

भारत में ऋतु क्रम

i) बसंत (Spring) :– मार्च-अप्रैल
ii) ग्रीष्म (Summer) :– मई-जून
iii) वर्षा (Rainy) :– जुलाई-अगस्त
iv) शरद् (Autumn) :– सितंबर-अक्तूबर
v) हेमंत (Hemant) :– नवंबर-दिसंबर
vi) शिशिर (Shishir) :– जनवरी-फरवरी

• किंतु भौगोलिक दृष्टि से तथा मौसम विभाग के अनुसार भारत में मुख्यतः चार ऋतुएँ ही है —

शीत ऋतु (Winter)

• यह मध्य नवंबर से मध्य मार्च तक रहता है।
• इस समय उत्तरी भारत में कोहरा छाया रहना एक सामान्य घटना है।

ग्रीष्म ऋतु (Summer)

• यह मध्य मार्च से मध्य जून तक रहता है।
• इस समय (मई और जून के महीनों में) उत्तर भारत में चलने वाली पछुआ हवा अत्यंत गर्म एवं शुष्क होती है जिसे लू कहते हैं। इसके बहुत अधिक तापमान (45°C-50°C) के कारण, इसके संपर्क में आने से अकसर हीटस्ट्रोक होता है।
• अप्रैल-मई महीने में उड़ीसा व पश्चिम बंगाल में चलने वाली धूल भरी आंधी को काल वैशाखी या नॉरवेस्टर कहा जाता है। ये प्रायः शाम के 3 बजे के आसपास आती हैं तथा थोड़ी वर्षा भी करती है। इस वर्षा से असम की चाय की फसल को काफी लाभ मिलता है। इससे आम की फसल को काफी नुकसान पहुंचता है, इसीलिए कर्नाटक और केरल में इसे “आम की बौछार” भी कहा जाता है।

वर्षा ऋतु (Rainy)

• यह मध्य जून से मध्य सितंबर तक रहता है।
• मध्य जून से मौसम में अचानक बदलाव आने लगता है। तेजी से हवा दक्षिण पश्चिम से आने लगती है। आकाश बादल से आच्छादित हो जाता है तथा गर्जन तर्जन के साथ भारी वर्षा होने लगती है। इसे ही मानसून का फटना (Monsoon Burst) कहा जाता है। इसी के साथ वर्षा ऋतु शुरू हो जाती है।

लौटती मानसून का मौसम (Retreating Monsoon)

• यह मध्य सितंबर से मध्य नवंबर तक रहता है।
• दक्षिण-पश्चिमी मानसून 15 नवंबर तक पूरे भारत को छोड़ देता है इसे ही मानसून का निवर्तन या लौटना कहा जाता है।

मानसून का मानव जीवन पर प्रभाव (Effect of monsoon on human life)

• मानसून का समय पर आना या देर से आना या जल्द चले जाना या एक लंबी अवधि के लिए गायब हो जाना आदि संपूर्ण भारतीय जन जीवन को प्रभावित करती है।
• मानसून से आने वाले विनाशकारी बाढ़ एवं सूखा, मृदा अपरदन तथा भूस्खलन के प्रभाव से प्रतिवर्ष लाखों लोग प्रभावित होते हैं।
• भारतीय मानसूनी जलवायु एक ओर वरदान है तो दूसरी ओर अभिशाप भी है।

– : समाप्त : –

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