भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) : एक परिचय (Introduction)

भारतीय राजव्यवस्था : एक परिचय

• भारतीय राजव्यवस्था नामक विषय में हमें भारत के संविधान के बारे में पढ़ना होता है।
• संविधान नियम एवं कानूनों का एक लिखित दस्तावेज होता है जिस नियम एवं कानूनों का संविधान में उल्लेख होता है, उन नियमों के तहत ही किसी देश में शासन प्रशासन चलाया जाता है। संविधान एक आईना के तरह होता है जो हमें देश के वर्तमान, भूत और भविष्य के बारे में बतलाता है। संविधान ही हमें यह बतलाता है कि सरकार का गठन कैसे होगा और कौन करेगा। संविधान ही हमें सरकार के अंगों के बारे में बतलाता है। सरकार के तीन अंग होते हैं।

• संविधान दो प्रकार के होते हैं –
i) लिखित संविधान :- विश्व के अधिकतर देश जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत आदि के संविधान लिखित है। विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान भारत देश का है।
ii) अलिखित संविधान :- ब्रिटेन के संविधान को अलिखित माना जाता है।

Q) संविधानवाद क्या है ?
उत्तर — संविधानवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसमें शासन का आधार संविधान होता है, विधि का शासन होता है और संविधान सर्वोच्च होता है। संविधानवाद का जन्म ब्रिटेन में हुआ है।

Q) राज्य क्या है ? इसके अनिर्वाय तत्वों का विवरण दें।
उत्तर — राजव्यवस्था की सबसे प्राथमिक अवधारण राज्य है। राज्य का अर्थ सिर्फ बिहार, झारखंड, केरल नहीं होता है बल्कि राज्य के अंतर्गत भारत सरकार, भारत की संसद, राज्य के सरकार, राज्य का विधानमंडल, पंचायती राज संस्थाएँ इत्यादि आता है। राज्य के लिए चार तत्व आवश्यक होते हैं –
i) भू-भाग :- एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का होना जरूरी होता है जैसे भारत के अंतर्गत 32 लाख 87 हजार 263 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र आता है।
ii) जनसंख्या :- निश्चित भू-भाग के अंतर्गत जनसंख्या का होना भी जरूरी है।
iii) सरकार :- निश्चित भू-भाग में जनसंख्या पर शासन चलाने के लिए सरकार का होना भी जरूरी होता है ताकि सुचारु एवं सुव्यवस्थित ढंग से शासन चलाया जा सके।
iv) संप्रभुता :- राज्य का सबसे महत्वपूर्ण तत्व संप्रभुता होता है। वैसा कोई भी राष्ट्र जिसके नीति निर्माण में वाह्य या आंतरिक तौर पर किसी दूसरे राष्ट्र का दबाव नहीं होता है उसे संप्रभु राष्ट्र कहा जाता है। भारत 1947 के बाद से एक संप्रभुत संपन्न राष्ट्र बना है क्योंकि 1947 से पहले भारत के लिए नीति का निर्माण ब्रिटेन के द्वारा होता था लेकिन 1947 के बाद भारत के नीति निर्माण में कोई भी वाह्य हस्तक्षेप देखने को नहीं मिला है।

शासन के अंग

• शासन के तीन अंग है –
i) विधायिका :- विधि का निर्माण करने वाली संस्था विधायिका कहलाती है। भारत में विधि का निर्माण करने वाली सबसे बड़ी संस्था संसद है। संसद के दो सदन लोकसभा और राज्यसभा है। विधि के निर्माण को लेकर संसद के सदनों में विधेयक लाया जाता है। विधेयक को दोनों सदन पारित करता है तत्पश्चात वह विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है और फिर राष्ट्रपति के मंजूरी से विधेयक कानून का रूप धारण कर लेता है।
ii) कार्यपालिका :- विधायिका द्वारा निर्मित विधि के अनुसार शासन का संचालन करवाना कार्यपालिका का कार्य होता है। इसके अंतर्गत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रीपरिषद इत्यादि आता है।
iii) न्यायपालिका :- संविधान तथा निर्मित विधि के अनुसार विवादों का निपटारा करना न्यायपालिका का कार्य होता है। इसके अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट आता है।

Q) क्या मानव समाज को राजनीतिक व्यवस्था की जरूरत है ?
उत्तर — कुछ विचारक जैसे कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी का मानना है कि अगर मानवों में आपसी समझ हो तो राजनैतिक व्यवस्था की कोई जरूरत नहीं है लेकिन अधिकांश विचारकों का मानना है कि मानव समाज को राजनैतिक व्यवस्था की आवश्यकता है क्योंकि मानव स्वार्थी प्रवृति के होते हैं और अपने स्वार्थ के चलते मानवों के बीच आपसी टकराव होता हैं। टकराव में शक्तिशाली लोग कमजोर लोगों के आवाज को दबा देता है। लेकिन अगर राज्य और राज्य व्यवस्थाएँ होती है तो लोगों में एक भय होता है जिससे मानव आपसी टकराव से बचते हैं। अगर राजनैतिक व्यवस्थाएं नहीं होती तो फिर समानता मूलक समाज का निर्माण नहीं हो पाता। कमजोर और गरीब लोग डर के माहौल में जीते जिससे संपूर्ण मानव का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता।

लोकतंत्र

• Democracy शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के दो शब्द Demos और cractia से मिलकर हुआ है। जिसमें Demos का अर्थ लोग और cractia का अर्थ शासन होता है। अर्थात Democracy का अर्थ लोगों का शासन होता है।

लोकतंत्र के प्रकार

• शासन और जनता से संपर्क के आधार पर लोकतंत्र दो प्रकार के होता है –
i) प्रत्यक्ष लोकतंत्र :- वैसी शासन प्रणाली जिसमें प्रत्यक्ष तौर पर शासन जनता के द्वारा चलायी जाती हो। अपवाद स्वरूप स्विट्जरलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र देखने को मिलता है। इस लोकतंत्र की प्रमुख विशेषता जनमत संग्रह, वापस बुलाने का अधिकार, पहल इत्यादि है।
ii) अप्रत्यक्ष लोकतंत्र :-  वैसी शासन प्रणाली जिसमें जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा शासन चलाया जाता हो उसे ही अप्रत्यक्ष लोकतंत्र कहते हैं। इसे प्रतिनिधि लोकतंत्र भी कहा जाता है। विश्व के अधिकतर देशों में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र देखने को मिलता है। जैसे भारत, अमेरिका, कनाडा इत्यादि।

• विचारधारा के आधार पर लोकतंत्र दो प्रकार के होते हैं –
i) उदारीवादी लोकतंत्र :- वैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था जिसमें व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ हो तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वाधिक महत्व हो । इस प्रकार के लोकतंत्र में यह माना जाता है कि व्यक्ति स्वयं को लेकर निर्णय लेने हेतु सर्वश्रेष्ठ है। अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में उदारवादी लोकतंत्र देखने को मिलता है।
ii) समाजवादी लोकतंत्र :- इसका आशय समाज में आर्थिक और सामाजिक तौर पर समानता स्थापित करना होता है। इसका उद्देश्य लोक-कल्याणकारी  राज्य की स्थापना करना होता है। भारत में समाजवादी लोकतंत्र देखने को मिलता है।

• राजनीतिक दलों के आधार पर लोकतंत्र के तीन प्रकार होते हैं –
i) एकदलीय लोकतंत्र :- वैसा देश जहाँ सत्ता में एक ही राजनैतिक दल हमेशा बना रहता है, एकदलीय लोकतांत्रिक देश कहलाता है। जैसे चीन।
ii) द्विदलीय लोकतंत्र :- वैसा देश जहाँ सत्ता में दो राजनैतिक दल ही अलग-अलग कार्यकाल में शासन में होता है। जैसे अमेरिका और ब्रिटेन। अमेरिका में कभी डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में होती है तो कभी रिपब्लिकन पार्टी सत्ता में होती है।
iii) बहुदलीय लोकतंत्र :- वैसा देश जहाँ अनेकों राजनैतिक पार्टियाँ अस्तित्व में रहे और कोई भी राजनैतिक पार्टी सत्ता में आ जाए। जैसे भारत।

शासन प्रणाली के प्रकार

• केन्द्र-राज्य संबंध के आधार पर तीन प्रकार के शासन प्रणाली होता है –
i) संघात्मक प्रणाली :- {केन्द्र = राज्य → अविनाशी राज्यों का अविनाशी संगठन} = अमेरिका में संघात्मक शासन प्रणाली देखने को मिलता है। इस शासन प्रणाली की प्रमुख विशेषता निम्न है –
a) संविधान लिखित होगा।
b) संविधान सर्वोच्च होगा।
c) स्वतंत्र न्यायपालिका होगी।
d) केन्द्र और राज्य के बीच स्पष्टता पूर्वक शक्ति का विभाजन होगा।
e) दोहरी नागरिकता होगी।

ii) एकात्मक प्रणाली :- {केन्द्र > राज्य → विनाशी राज्यों का अविनाशी संगठन} = इस प्रकार के शासन प्रणाली का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण ब्रिटेन है। इसके प्रमुख गुण निम्न है –
a) एकल नागरिकता
b) संविधान लिखित हो भी सकता है और नहीं भी।
c) संविधान सर्वोच्च हो भी सकता है और नहीं भी।

iii) परिसंघात्मक प्रणाली :- {केन्द्र < राज्य → अविनाशी राज्यों का विनाशी संगठन} = इस प्रकार के शासन प्रणाली में राज्य का महत्व अधिक होता है। इस प्रकार की शासन प्रणाली रूस के विघटन से पहले पूर्व सोवियत संघ में मिला है। इस शासन प्रणाली की प्रमुख विशेषता निम्न है –
a) केन्द्र और राज्य के बीच स्पष्टता पूर्वक शक्ति का विभाजन देखने को मिलता है।
b) संविधान सर्वोच्च होता है।
c) स्वतंत्र न्यायपालिका होती है।

Q) भारतीय संविधान संघीय स्वरूप का है, लेकिन इसका झुकाव एकात्मकता की और है ? स्पष्ट करें।
उत्तर — संविधान में federal शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है जो इस बात को स्पष्ट करता है कि भारत में पूर्णतः संघीय स्वरूप का शासन नहीं है। भारत के लिए संविधान में ‘राज्यों का संघ’ शब्द आया है। भारतीय संविधान के निम्न प्रावधान यह स्पष्ट करता है कि भारतीय संविधान संघीय स्वरूप का है –
i) लिखित संविधान :- भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसमें मूलतः 22 भाग और 395 अनुच्छेद हुआ करता था।
ii) शक्तियों का विभाजन :- भारतीय संविधान का 7वाँ अनुसूची संघ सूची , राज्य सूची और समवर्ती सूची का प्रावधान करते हुए केन्द्र और राज्य के बीच शक्ति का विभाजन करता है। संघ सूची के विषय पर कानून संसद बनाता है और राज्य सूची के विषय पर कानून राज्य विधानमंडल बनाता है।
iii) संविधान की सर्वोच्चता :- भारतीय राजनीतिक परंपरा के अंतर्गत सर्वोच्च स्थान संविधान को प्राप्त है। हर कोई संविधान से ही शक्ति प्राप्त करता है।
iv) न्यायपालिका की स्वतंत्रता :- भारत का संविधान स्वतंत्र न्यायपालिका के गठन को लेकर प्रावधान अनुच्छेद 124 में करता है।
           ऊपर लिखे विवरण से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान संघीय स्वरूप का है।
भारतीय संविधान का झुकाव एकात्मकता की ओर है क्योंकि हमारा संविधान एकल नागरिकता, एकीकृत न्यायपालिका, अखिल भारतीय संघ, विशेष परिस्थिति में राज्य सूची के विषय पर भी कानून संसद ही बनाता है। संसद यदि चाहे तो राज्यों के सीमा में परिवर्तन, राज्यों का पुर्नगठन कर सकता है। एकात्म शासन प्रणाली में राज्य की तुलना में केन्द्र के पास ज्यादा शक्ति होता है। भारत में केन्द्र के पास राज्य की तुलना में ज्यादा शक्ति है। ऊपर लिखे विवरण से यह स्पष्ट होता है कि संविधान का झुकाव एकात्मकता की ओर है।

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