संविधान की प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features of the Constitution)

संविधान की प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features of the Constitution)

• संविधान में कई बड़े परिवर्तन करने वाले 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 को ‘मिनी कॉन्स्टिट्यूशन’ कहा जाता है।
• सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले (1973) में यह व्यवस्था दी थी कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को मिली संवैधानिक शक्ति संविधान के ‘मूल ढांचे’ को बदलने की अनुमति नहीं देती।

भारतीय संविधान की विशेषताएँ

1) सबसे लंबा लिखित संविधान

• भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
• मूल संविधान में एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभक्त) और 8 अनुसूचियाँ थी।

2) विभिन्न स्रोतों से विहित

• भारतीय संविधान का सबसे बड़ा स्रोत 1935 के भारत शासन अधिनियम है।
• भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि “भारत के संविधान का निर्माण विश्व के विभिन्न संविधानों को छानने के बाद किया गया है।”

3) नम्यता एवं अनम्यता का समन्वय

• संविधान को नम्यता और अनम्यता की दृष्टि से भी वर्गीकृत किया जाता है –
i) कठोर या अनम्य संविधान :- वैसा संविधान जिसमें संशोधन करने के लिए विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता होती है उसे कठोर संविधान कहते हैं। उदाहरण अमेरिका का संविधान।
ii) लचीला या नम्य संविधान :- वैसा संविधान जिसमें संशोधन की प्रक्रिया वही हो, जैसी किसी आम कानूनों के निर्माण की तब उसे कठोर संविधान कहते हैं। उदाहरण ब्रिटेन का संविधान।

• भारत का संविधान न तो लचीला है और न ही कठोर, बल्कि यह दोनों का मिला-जुला रूप है।

4) एकात्मकता की ओर झुकाव के साथ संघीय व्यवस्था

• भारत का संविधान संघीय सरकार की स्थापना करती है। फिर भी, संविधान में कहीं भी ‘संघीय’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसके बदले अनुच्छेद 1 में भारत को ‘राज्यों का संघ’ कहा गया है।
• भारतीय संविधान को कई नाम दिए गए हैं –
i) एकात्मकता की भावना में संघ
ii) अर्द्ध संघ – के.सी. वेरे
iii) बारगेनिंग फेडरेलिज्म – मॉरिस जोंस
iv) को-ऑपरेटिव फेडरेलिज्म – ग्रेनविल ऑस्टिन
v) फेडरेशन विद ए सेंट्रलाइजिंग टेंडेंसी – आइवर जेनिंग्स

5) सरकार का संसदीय रूप

• भारतीय संविधान ने अमेरिका की अध्यक्षीय प्रणाली की बजाए ब्रिटेन के संसदीय तंत्र को अपनाया है।
• संसदीय व्यवस्था विधायिका और कार्यपालिका के मध्य समन्वय व सहयोग के सिद्धांत पर आधारित है, जबकि अध्यक्षीय प्रणाली दोनों के बीच शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत पर आधारित है।
• संसदीय प्रणली को सरकार के वेस्टमिंस्टर रूप, उत्तरदायी सरकार और मंत्रिमंडलीय सरकार के नाम से भी जाना जाता है।

6) संसदीय संप्रभुता एवं न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय

• संसद की संप्रभुता का नियम ब्रिटिश संसद से जुड़ा हुआ है, जबकि न्यायपालिका की सर्वोच्चता का सिद्धांत, अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से लिया गया है।
• अमेरिका संविधान में ‘विधि की नियत प्रक्रिया’ का प्रावधान है, जबकि भारतीय संविधान में ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ (अनुच्छेद 21) का प्रावधान है।

7) एकीकृत व स्वतंत्र न्यायपालिका

• भारतीय संविधान एक ऐसी न्यायपालिका की स्थापना करता है, जो अपने आप में एकीकृत होने के साथ-साथ स्वतंत्र है।

8) मौलिक अधिकार

• संविधान के तीसरे भाग में 6 मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है।
• हालांकि मौलिक अधिकारों को संसद संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से समाप्त कर सकती हैं अथवा कटौती भी कर सकती हैं।

9) राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांत

• राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांत भारतीय संविधान की अनूठी विशेषता है। इन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है – सामाजिक, गांधीवादी तथा उदारवादी। इनका उद्देश्य भारत में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
मिनर्वा मिल्स मामले (1980) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि, “भारतीय संविधान की नींव मौलिक अधिकारों और नीति-निदेशक सिद्धांतों के संतुलन पर रखी गई है।”

10) मौलिक कर्तव्य

• मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख नहीं किया गया था। इन्हें स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर 1976 के 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया था।

11) एक धर्मनिरपेक्ष राज्य

• भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है। इसीलिए यह किसी धर्म विशेष को भारत के धर्म के तौर पर मान्यता नहीं देता।
• 1976 के 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को जोड़ा गया।
• धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी अवधारणा धर्म (चर्च) और राज्य (राजनीति) के बीच पूर्ण अलगाव रखती है।

12) सार्वभौम वयस्क मताधिकार

• भारतीय संविधान हर वह व्यक्ति जिसकी उम्र कम से कम 18 वर्ष है, उसे धर्म, जाति, लिंग, साक्षरता अथवा संपदा इत्यादि के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना मतदान करने का अधिकार प्रदान करता है।
• 1989 में 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1988 के द्वारा मतदान करने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था।

13) एकल नागरिकता

• भारतीय संविधान में एकल नागरिकता का प्रावधान है अर्थात भारतीय नागरिकता।

14) स्वतंत्र निकाय

• भारतीय संविधान कुछ स्वतंत्र निकायों की स्थापना भी करता है। जैसे – निर्वाचन आयोग, नियंत्रक एवं महालेखाकार, संघ लोक सेवा आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग इत्यादि।

15) आपातकालीन प्रावधान

• आपातकाल की स्थिति से प्रभावशाली ढंग से निपटने के लिए भारतीय संविधान में राष्ट्रपति के लिए वृहत आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था है। संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल की विवेचना की गई है –
i) राष्ट्रीय आपातकाल
ii) राज्य में आपातकाल (राष्ट्रपति शासन)
iii) वित्तीय आपातकाल

16) त्रिस्तरीय सरकार

• मूल रूप से भारतीय संविधान में दो स्तरीय राजव्यवस्था और संगठन की व्यवस्था की गई थी। बाद में 1992 में 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन ने तीन स्तरीय सरकार का प्रावधान किया गया, जो विश्व के किसी और संविधान में नहीं है।

17) सहकारी समितियाँ

• 97वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2011 ने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण प्रदान किया।

संविधान की आलोचना

i) उधार का संविधान :- भारतीय संविधान को ‘उधार का संविधान’ और ‘उधारी की एक बोरी’ अथवा एक ‘हॉच पॉच कन्स्टीच्युशन’ कहा गया है।
ii) 1935 के अधिनियम की कार्बन कॉपी :- एन. श्रीनिवासन का कहना है कि “भारतीय संविधान भाषा और वस्तु दोनों ही तरह से 1935 के अधिनियम की नकल है।” पी. आर. देशमुख ने टिप्पणी की कि “संविधान अनिवार्यतः भारत सरकार अधिनियम 1935 ही है, बस वयस्क मताधिकार उसमें जुड़ गया है।”
iii) अभारतीय अथवा भारतीयता विरोधी :- के. हनुमंथैय्या ने टिप्पणी की – “हम वीणा या सितार का संगीत चाहते थे, लेकिन यहाँ हम एक इंग्लिश बैंड का संगीत सुन रहे हैं। ऐसा इसीलिए कि हमारे संविधान निर्माता उसी प्रकार से शिक्षित हुए।”
iv) गाँधीवाद से दूर
v) विशालकाय संविधान :- एच.वी. कामथ ने कहा – “मुझे विश्वास है, सदन इस पर सहमत नहीं होगा कि हमने एक हाथीनुमा संविधान बनाया है।”
vi) वकीलों का स्वर्ग :- सर आइवर जेनिंग्स ने संविधान को ‘वकीलों का स्वर्ग’ कहा है।

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