भारतीय संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical background of the Indian Constitution)

संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

• 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई। इस समय ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम थी जिन्होंने ब्रिटिश कंपनी को भारत के साथ व्यापार करने का अधिकार दी। कंपनी के स्थापना के समय मुगल बादशाह अकबर था। कंपनी भारत में अपना व्यापार प्रारंभ जहाँगीर के शासनकाल में किया। ब्रिटिश कंपनी और मुगलों के बीच संघर्ष की शुरुआत मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल से ही हो चुकी थी। 1707 में औरंगजेब के निधन होने के बाद सभी अयोग्य मुगल बादशाह पैदा हुए जिसका लाभ अंग्रेजी कंपनी उठाते हुए भारत की राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करना प्रारंभ कर दिया।
• 1757 की प्लासी युद्ध से अंग्रेजों ने भारत में अपनी प्रभुसत्ता स्थापित की। इस युद्ध के बाद बंगाल का गवर्नर का पद आया। इस पद पर सर्वप्रथम रार्बट क्लाइव आसीन हुए।
• बक्सर युद्ध के बाद कंपनी ने 1765 में बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी (अर्थात राजस्व एवं दीवानी न्याय के अधिकार) अधिकार प्राप्त कर लिया।

कंपनी का शासन (1773 से 1858 तक)

1773 के रेगुलेटिंग एक्ट

• यह एक्ट गुप्त कमिटि के सिफारिश पर 1773 में पारित हुआ है। इस एक्ट के पारित होने के समय लॉर्ड नॉर्थ ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे। इस एक्ट का काफी महत्व है क्योंकि इस एक्ट से ब्रिटिश संसद ने ब्रिटिश कंपनी को नियंत्रण में लाने का प्रयास किया। इस एक्ट के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं –
1. इस एक्ट के तहत केन्द्रीय प्रशासन की नींव पड़ी।
2. बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन बंबई और मद्रास प्रेसिडेंसी को कर दिया गया।
3. बंगाल प्रेसिडेंसी में बंगाल के गवर्नर जनरल व चार सदस्यों के नेतृत्व में सरकार का गठन किया गया।
4. कोलकाता में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के गठन का प्रावधान किया गया । इसी प्रावधान के तहत 1774 में कोलकाता में SC का गठन हुआ जिसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर एलिजाह इम्पे बने थे तथा तीन अन्य न्यायाधीश चैम्बर्स, लिमेस्टर और हाइड था।
5. बंगाल के गवर्नर के कार्य अधिकार शक्ति में इजाफा कर बंगाल का गर्वनर जनरल बना दिया गया।
6. इस एक्ट के तहत बंगाल के प्रथम गर्वनर जनरल वारेन हेस्टिंग्स थे।
7. इस एक्ट को ‘प्रयास एवं भूल’ की संज्ञा दी जाती है क्योंकि यह एक्ट अस्पष्ट था।
8. इस एक्ट के तहत यह प्रावधान किया गया कि कंपनी के लोग भारतीयों से उपहार या रिश्वत नहीं लेंगे।
9. इस एक्ट में यह भी प्रावधान किया गया कि बिना लाइसेंस प्राप्त किए कंपनी के कर्मचारी निजी व्यापार नहीं करेंगे।
10. इस एक्ट के तहत कंपनी को राजनैतिक और प्रशासनिक कार्य करने का भी अधिकार दिया गया।
11. इस एक्ट के तहत बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के जरिए कंपनी को ब्रिटिश संसद ने नियंत्रण में लाने का प्रयास किया।
12. इस एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए 1781 में एक्ट ऑफ सैटलमेंट लाया गया जिसके तहत बंगाल के गर्वनर जनरल के और SC के कार्यों को निर्धारित कर दिया गया।

1784 का पिट्स इंडिया एक्ट

• यह एक्ट 1784 में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विलियम पिट के द्वारा पारित किया गया जिस कारण इसे पिट्स इंडिया एक्ट कहा जाता है। इस एक्ट के पारित होने के वजह से ही वारेन हेस्टिंग्स बंगाल के गवर्नर जनरल पद से इस्तीफा दे दिया था। इस एक्ट के प्रमुख प्रावधान निम्न थे –
1. कंपनी के राजनीतिक और व्यापारिक मामलों को अलग-अलग कर दिया गया।
2. कंपनी के व्यापारिक मामलों को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स देखा करता था लेकिन कंपनी के राजनैतिक मामलों की देखरेख हेतु लंदन में बोर्ड ऑफ कंट्रोलर का गठन किया गया। इस प्रकार कंपनी के नेतृत्व में द्वैध शासन की शुरूआत हुई जो 1858 तक रहा।
3. कंपनी द्वारा भारत में जीते गए क्षेत्र को ब्रिटिश आधिपत्य के क्षेत्र का दर्जा दिया गया।
4. इस एक्ट के तहत गवर्नर जनरल के कार्यकारी परिषद में सदस्यों की संख्या 4 से घटाकर तीन कर दी गई।
5. 1784 के पिट्स इंडिया एक्ट में संशोधन 1786 में हुआ जिसे 1786 का ऐमेंडमेंट एक्ट कहते हैं। इस एक्ट के तहत गवर्नर जनरल को विशेषाधिकार (Veto) का अधिकार प्रदान किया गया। यानी गवर्नर जनरल को यह अधिकार दिया गया कि वे अपनी परिषद द्वारा सलाह को मान भी सकते हैं या नहीं भी मान सकते हैं।

NOTE :- लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल के गवर्नर जनरल के पद को स्वीकार करने पर जब राजी हुआ जब उसे सेनापति या कमांडर इन चीफ भी बनाया जाता। बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस हुए जिन्हें कमांडर इन चीफ भी बनाया गया।

1793 का चार्टर एक्ट

• इस एक्ट की प्रमुख विशेषता निम्न है –
1. इस एक्ट में यह प्रावधान किया गया कि कंपनी को अगले 20 वर्षों तक व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त रहेगा। कंपनी के स्थापना के समय महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने कंपनी को 15 वर्षों के लिए व्यापारिक एकाधिकार प्रदान किया था लेकिन अगले राजा जेम्स प्रथम ने कंपनी को अनिश्चित कालीन व्यापारिक एकाधिकार प्रदान किया।
2. कंपनी के अधीन अधिकारियों एवं कर्मचारियों को वेतन भारतीय राजस्व से दिए जाने का प्रावधान किया गया।

1813 का चार्टर एक्ट

• इस एक्ट के निम्न प्रावधान थे –
1. कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
2. भारत में चाय और चीन के साथ व्यापारिक एकाधिकार बना रहा।
3. इस एक्ट के तहत प्रत्येक वर्ष भारतीय शिक्षा पर एक लाख रुपये खर्च किए जाने का प्रावधान किया गया।
4. ईसाई मिशनरियों को भारत में ईसाई धर्म प्रचार की खुली छूट दी गई।
5. इस एक्ट के तहत स्थानीय सरकारों को लोगों पर कर लगाने और उसे वसूल करने का भी अधिकार दिया गया। कर नहीं देने पर दंड देने का अधिकार भी दिया गया।

1833 का चार्टर एक्ट

• इस एक्ट के निम्न प्रावधान थे –
1. इस एक्ट के तहत कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को पूर्णतः समाप्त किया गया।
2. कंपनी को प्रशासनिक कंपनी बना दिया गया।
3. कंपनी के अधीन होने वाले नियुक्ति में भेदभाव को प्रतिबंधित कर दिया गया।
4. इस एक्ट ने भारतीयों को यह अधिकार दिया कि कंपनी के अधीन नियुक्त हो सके।
5. इस एक्ट के तहत बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया।
6. इस एक्ट के तहत भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक बने।
7. इस एक्ट में दास प्रथा को अंत करने की घोषणा की गई। लेकिन दास प्रथा का अंत 1843 में लॉर्ड एलनबरो के द्वारा किया गया।
8. इस एक्ट के तहत गवर्नर जनरल के कार्यकारिणी परिषद में चौथे सदस्य के रूप में विधि सदस्य को शामिल करने का प्रावधान किया गया। इस प्रावधान के तहत विधि सदस्य लॉर्ड मैकाले को बनाया गया। प्रथम विधि आयोग का गठन 1834 में हुआ। विधि आयोग के प्रथम सदस्य लॉर्ड मैकाले बने।
9. इस एक्ट में ही पहली बार भारत के संविधान के निर्माण को लेकर धुंधला संकेत मिलता है।
10. इस एक्ट तहत पहली बार सिविल सेवकों के नियुक्ति हेतु प्रतियोगिता परीक्षा प्रारंभ करने का प्रयास किया गया लेकिन बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया।

• भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी लॉर्ड बैंटिक के शासन काल में 1835 में बनाया गया ।

NOTE :- 1813 के चार्टर एक्ट के तहत कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को आंशिक रूप से समाप्त किया गया तो वहीं 1833 के तहत पूर्णतः समाप्त कर दिया गया।

1853 का चार्टर एक्ट

• इस एक्ट के प्रावधान निम्न है –
1. सिविल सेवकों की नियुक्ति हेतु प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। इससे पहले सिविल सेवकों की नियुक्ति बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के द्वारा किया जाता था। इसके लिए 1854 में मैकाले समिति की नियुक्त की गई। सिविल सेवा प्रतियोगिता परीक्षा प्रारंभ करने वाला विश्व का पहला देश चीन था।
2. सिविल सेवा प्रतियोगिता परीक्षा पास करने वाले प्रथम भारतीय सत्येन्द्र नाथ टैगोर हुए।
3. 1922-23 से सिविल प्रतियोगिता परीक्षा लंदन के साथ-साथ भारत (इलाहाबाद) में भी होना प्रारंभ हुआ।
4. इस एक्ट में कहा गया कि कंपनी ब्रिटेन के महारानी की इच्छा रहने तक भारत में प्रशासनिक कंपनी बनी रहेगी।
5. इस एक्ट के तहत गवर्नर जनरल के परिषद के विधायी और प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया गया।
6. इस एक्ट के तहत गवर्नर जनरल के लिए एक नयी विधान परिषद का गठन किया गया जिसे केन्द्रीय विधान परिषद कहा गया। आगे चलकर इसे लघु संसद के नाम से जाना गया।
7. इस एक्ट के द्वारा पहली बार भारतीय विधान परिषद में स्थानीय प्रतिनिधित्व को शामिल किया गया।

ताज का शासन (1858 से 1947 तक)

1858 का भारत शासन अधिनियम

• इस अधिनियम का निर्माण 1857 के विद्रोह के बाद किया गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम या सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है। इस अधिनियम को भारत के शासन को बेहतर बनाने वाला अधिनियम कहा जाता है। इसके प्रावधान निम्न थे –
1. ब्रिटिश कंपनी के शासन का अंत किया गया।
2. ब्रिटिश क्राउन/ताज के शासन को स्थापित किया गया।
3. भारत के गवर्नर जनरल का पदनाम बदलकर भारत का वायसराय किया गया। भारत के प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग बने।
4. बोर्ड ऑफ कंट्रोलर और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स जैसे संस्थाओं को समाप्त कर दिया गया।
5. भारत का सचिव नामक एक नया पद लाया गया जो ब्रिटिश मंत्रिमंडल का सदस्य होता था जिसकी सहायता के लिए एक 15 सदस्यी भारत परिषद का गठन किया गया। प्रथम सचिव लार्ड स्टेलनी बना।
6. भारत से मुगल सत्ता का अंत कर दिया गया।

1861 का भारत परिषद अधिनियम

• इस एक्ट के प्रमुख प्रावधान निम्न है –
1. वायसराय को अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया। अध्यादेश एक प्रकार का अस्थायी कानून होता है।
2. इस अधिनियम के तहत भारत में मंत्रिमंडलीय प्रणाली या कैबिनेट प्रणाली या Portfolio प्रणाली की नींव पड़ी।
3. इस अधिनियम के तहत विकेन्द्रीयकरण की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी गई क्योंकि बंबई और मद्रास प्रेसिडेंसी को वापस कानून बनाने की शक्ति दी गई।
4. इस अधिनियम के तहत भारत में संवैधानिक विकास का सूत्रपात हुआ।
5. इस अधिनियम के तहत विधि के निर्माण में पहली बार भारतीय प्रतिनिधियों को भी शामिल करने का प्रयास किया गया।
6. इस अधिनियम के तहत 1862 में बंगाल में, 1866 में उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में और 1897 में पंजाब में विधान परिषद का गठन किया गया।
7. लॉर्ड कैनिंग ने 1862 में तीन भारतीय बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया।

1873 का अधिनियम :- इस एक्ट में यह प्रावधान किया गया कि ब्रिटिश कंपनी को कभी भी भंग किया जा सकता है। इस एक्ट के प्रावधान के तहत ही 1 जनवरी 1884 को ब्रिटिश कंपनी को औपचारिक तौर पर भंग कर दिया गया।

1892 का भारत परिषद अधिनियम

• 1885 में स्थापित कांग्रेस नामक संस्था के दबाव में आकर यह अधिनियम पारित हुआ। इसके प्रमुख प्रावधान निम्न है –
1. अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत हुई।
2. विधान परिषद के सदस्यों को कार्यपालिका से प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया लेकिन पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं दिया गया।
3. विधान परिषद के सदस्यों को बजट पर बोलने का अधिकार दिया गया लेकिन मतदान करने का अधिकार नहीं दिया गया।

1909 का भारत परिषद अधिनियम

• इस एक्ट को भारत के तात्कालिक भारत के सचिव लॉर्ड मॉर्ले तथा भारत वायसराय लॉर्ड मिंटो ने मिलकर बनाया। इसलिए इसे मॉर्ले-मिंटो सुधार एक्ट भी कहते हैं। इस एक्ट के पारित होने के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री HH Acquith थे। इसके प्रमुख प्रावधान निम्न है –
1. मुसलमानों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया अर्थात मुसलमानों के लिए अलग चुनाव होते और उस चुनाव में उम्मीदवार और मतदाता दोनों मुसलमान ही होते।
2. इस एक्ट ने भारत में सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति की शुरुआत की। भारत में सांप्रदायिक निर्वाचन का जनक लॉर्ड मिंटो को माना जाता है।
3. वायसराय के कार्यकारिणी परिषद में एक भारतीय सदस्य को शामिल किया जाएगा। इस प्रावधान के तहत ही वायसराय के कार्यकारिणी परिषद में शामिल होने वाले प्रथम भारतीय सत्येन्द्र प्रसाद सिंहा हुए।
4. इस एक्ट के तहत विधान परिषद के सदस्यों को बजट पर मतदान करने का अधिकार प्रदान किया गया।
5. विधान परिषद के सदस्यों को पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।

आलोचना
• R.C. मजुमदार ने 1909 के सुधारों को चंद्रमा के चांदनी जैसा बतलाया है।
• K.M. मुंशी ने कहा है कि 1909 के अधिनियम ने भारत में उभरते लोकतंत्र के गला को घोंट दिया।
• महात्मा गांधी ने 1909 के अधिनियम को लोकतंत्र को सर्वनाश करने वाला अधिनियम कहा है।
• 1909 के अधिनियम को लेकर मिंटो ने मॉर्ले के नाम खत लिखते हुए यह कहा कि हमने नाग के मुँह में दाँत बो दिया है इसका परिणाम काफी भीषण होगा।

1919 का भारत शासन अधिनियम

• इस एक्ट को भारत के तात्कालिक भारत के सचिव माण्टेग्यू तथा भारत वायसराय चेम्सफोर्ड ने मिलकर बनाया। इसलिए इसे माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार एक्ट कहते हैं। यह एक प्रकार का संवैधानिक सुधार है। इस एक्ट के पारित होने के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉयड जॉर्ज थे। यह अधिनियम लागू 1921 से हुआ था। इसके प्रमुख प्रावधान निम्न है –
1. प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत हुआ।
2. महिलाओं को मतदान करने का अधिकार मिला ।
3. केंद्रीय बजट से राज्य के बजट को अलग किया गया ।
4. इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत सिख, ईसाई और आंग्ल-भारतीय समुदाय के लोगों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया।
5. केन्द्र में द्वि-सदनीय विधायिका – राज्य परिषद (बाद में राज्यसभा) और केन्द्रीय विधान परिषद (बाद में लोकसभा) का प्रावधान किया गया। राज्य परिषद में सदस्यों की संख्या 60 हुआ करती थी जिसमें 36 सदस्य निर्वाचित होने थे और 24 सदस्य मनोनीत होने थे। राज्य परिषद के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्षों का हुआ करता था। केन्द्रीय विधानसभा में 144 सदस्य होने थे जिसमें से 104 सदस्य निर्वाचित और 40 सदस्य मनोनीत होने थे। केन्द्रीय विधानसभा के सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्षों का हुआ करता था। पहली बार केन्द्रीय विधानसभा के चुनाव 1920 में आयोजित हुआ था।
6. इस अधिनियम के तहत 1921 में लोक लेखा समिति का गठन किया गया।
7. इस अधिनियम में यह प्रावधान किया गया कि सिविल सेवकों की नियुक्ति हेतु प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन लंदन के साथ-साथ भारत में भी किया जाएगा। इस प्रावधान के तहत पहली बार भारत में 1922 में इलाहाबाद में सिविल सेवकों की नियुक्ति हेतु प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित हुआ।
8. इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत संघ लोक सेवा आयोग का गठन 1926 में ली कमीशन के सिफारिश पर हुआ।
9. इस अधिनियम के तहत प्रांतों में द्वैध शासन लागू किया गया तथा काम करने वाले विषय को आरक्षित और हस्तांतरित दो भागों में बांटा गया। आरक्षित विषयों का शासन गवर्नर अपने कार्यपालिका परिषद की सहायता से करता था इसके अंतर्गत राजस्व, वित्त, पुलिस, जेल, न्याय प्रशासन, बिजली, सिंचाई, कारखाना इत्यादि आता था। वहीं हस्तांतरित विषय के अंतर्गत सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, स्थानीय स्वशासन, पुस्तकालय, कृषि इत्यादि आता था। हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर उन मंत्रियों की सहायता से शासन करता था जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी होते थे।

NOTE :- प्रांतों में द्वैध शासन का जनक लियोनस कर्टियस को माना जाता है इन्होंने ने डाई-आर्की नामक पुस्तक की रचना की है जिसमें द्वैध शासन को समझाया गया है।

साइमन कमीशन आयोग

• 1919 के अधिनियम भारत में सुचारू एवं व्यवस्थित ढंग से लागू हुआ है या नहीं इसकी जाँच को लेकर 10 वर्षों बाद एक आयोग गठित होना था लेकिन 10 वर्षों के पहले ही 8 Nov 1927 को लंदन में साइमन कमीशन आयोग का गठन हुआ। इस आयोग में सात सदस्य थे जिसमें सभी अंग्रेज ही थे इसीलिए इसे व्हाइट मैन कमीशन भी कहा जाता है। इस आयोग में सभी सदस्य अंग्रेज थे इसीलिए भारतीयों ने इसका विरोध किया। इस आयोग के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे। इस आयोग का भारत आगमन 3 फरवरी 1928 को हुआ। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1930 में प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट पर विचार-विमर्श हेतु तीन गोलमेज सम्मेलन 1930, 1931 और 1932 में आयोजित हुआ जिसके आधार पर भारत शासन अधिनियम 1935 बनकर तैयार हुआ।

सांप्रदायिक अवार्ड

• ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने अगस्त 1932 में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व पर एक योजना की घोषणा की। इसे कम्युनल अवार्ड या सांप्रदायिक अवार्ड के नाम से जाना गया।
• दलितों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था से गाँधी बहुत व्यथित हुए और उन्होंने अवार्ड में संशोधन के लिए पूना की यरवदा जेल में अनशन प्रारंभ कर दिया।
पूना समझौता 1932 में हुआ। इसमें संयुक्त हिंदू निर्वाचन व्यवस्था को बनाए रखा गया और दलितों के लिए स्थान भी आरक्षित कर दिए गए।

1935 का भारत शासन अधिनियम

• यह अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया सबसे बड़ा अधिनियम है। यह अधिनियम भारतीय संविधान का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत माना जाता है क्योंकि भारतीय संविधान में अधिकतर प्रावधान (250 से अधिक अनुच्छेद) यहीं से लिए गए हैं। भारतीय संविधान को 1935 का भारत शासन अधिनियम का कार्बन कॉपी माना जाता है। यह अधिनियम लागू जुलाई 1936 से हुआ है। इस अधिनियम में 14 भाग, 321 अनुच्छेद एवं 10 अनुसूचियाँ थी लेकिन प्रस्तावना का अभाव था। इस अधिनियम के पारित होने के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री Stanley Bladwin थे। इसके प्रमुख विशेषता निम्न है –
1. इस अधिनियम में कहा गया कि देशी रियासत और ब्रिटिश प्रांत को मिलाकर भारतीय संघ का निर्माण किया जाएगा। लेकिन भारत संघ अस्तित्व में नहीं आ सका क्योंकि देशी रियासत शामिल होने से इनकार कर दिया।
2. इस अधिनियम के तहत दलित, महिला और मजदूर को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया।
3. प्रांतों में विधानसभा के चुनाव कराये जायेंगे। प्रांतों में सर्वप्रथम विधानसभा के चुनाव 1937 में हुए।
4. इस अधिनियम के तहत प्रांतों में द्वि-सदनीय विधायिका का प्रावधान किया गया।
5. इस अधिनियम के तहत संघीय न्यायालय (Federal Court) की स्थापना 1937 में हुई।
6. इस अधिनियम में ही यह प्रावधान था कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्य लोक सेवा आयोग होगा तथा दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक संयुक्त लोकसेवा आयोग हो सकता है।
7. इस अधिनियम में संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची का प्रावधान किया गया।
8. राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने को प्रेरित करता है।
9. प्रांतों से द्वैध शासन को समाप्त किया गया।
10. केन्द्र में द्वैध शासन लागू किए गए।
11. इस अधिनियम की सबसे प्रमुख विशेषता प्रांतीय स्वायत्तता है।
12. बर्मा (म्यांमार) को भारत से अलग कर दिया गया।
13. इस अधिनियम के तहत देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।

आलोचना
• पंडित नेहरू ने इस एक्ट को “अनेकों ब्रेक वाला इंजनरहित रेलगाड़ी” बताया साथ ही साथ पंडित नेहरु ने इसे “गुलामी या दासता का अधिकार पत्र” कहा ।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947

• यह ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित किया गया अंतिम अधिनियम है। 3 जून 1947 को माउंटबेटन योजना भारतीयों के समक्ष रखी गई थी इस योजना को स्वीकृति दिलाने हेतु ही 4 जुलाई को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम लाया गया। ब्रिटिश संसद ने इसे पारित 18 जुलाई 1947 को किया। इसके पारित होने के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली थे। इस अधिनियम के तहत ही माउंटबेटन प्लान को स्वीकृति दी गई जिसके तहत भारत को आजादी मिली तथा भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान का निर्माण हुआ। इसके प्रमुख विशेषता निम्न है –
1. इस अधिनियम के तहत भारत की सत्ता भारतीयों के हाथ में 15 अगस्त 1947 को सौंपी गई।
2. इस अधिनियम के तहत 14 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया।
3. इस अधिनियम में यह प्रावधान था कि जबतक दोनों देशों में संविधान नहीं बन जाता है तब तक 1935 के भारत शासन अधिनियम के तहत दोनों देशों में शासन-प्रशासन चलाए जाएंगे।
4. बाल्कन प्लान का संबंध भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 से हैं। पंडित नेहरू के समक्ष बाल्कन प्लान माउंटबेटन ने रखा था। इस प्लान के तहत भारत को टूकड़ा-2 में बाँटना था। इसे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अस्वीकार कर दिया।
5. इसके तहत भारत के सचिव के पद को समाप्त कर दिया गया तथा राष्ट्रमंडल के सचिव का पद लाया गया। प्रथम भारत सचिव लॉर्ड स्टेनली बने थे तो वहीं अंतिम भारत का सचिव लिस्टोवेल बने थे।

1946 में गठित अंतरिम सरकार

1) जवाहरलाल नेहरू → राष्ट्रमंडल संबंध तथा विदेश मामले
2) सरदार वल्लभ भाई पटेल → गृह, सूचना एवं प्रसारण
3) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद → खाद्य एवं कृषि
4) जॉन मथाई → उद्योग एवं नागरिक आपूर्ति
5) जगजीवन राम → श्रम
6) सरदार बलदेव सिंह → रक्षा
7) सी. एच. भाभा → कार्य, खान एवं ऊर्जा
8) लियाकत अली खाँ → वित्त
9) अब्दूर-रब-निश्तार → डाक एवं वायु
10) आसफ अली → रेलवे एवं परिवहन
11) सी. राजगोपालाचारी → शिक्षा एवं कला
12) आई. आई. चुंदरीगर → वाणिज्य
13) गजनफर अली खान → स्वास्थ्य
14) जोगेंद्र नाथ मंडल → विधि

1947 में गठित स्वतंत्र भारत का पहला मंत्रिमंडल

1) जवाहरलाल नेहरू → प्रधानमंत्री; राष्ट्रमंडल तथा विदेश मामले; वैज्ञानिक शोध
2) सरदार वल्लभ भाई पटेल → गृह, सूचना एवं प्रसारण, राज्यों के मामले
3) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद → खाद्य एवं कृषि
4) डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी → उद्योग एवं नागरिक आपूर्ति
5) जगजीवन राम → श्रम
6) सरदार बलदेव सिंह → रक्षा
7) वी. एन. गाडगिल → कार्य, खान एवं ऊर्जा
8) आर. के. षणमुगम शेट्टी → वित्त
9)  रफी अहमद किदवई → संचार
10) डॉ० जॉन मथाई → रेलवे एवं परिवहन
11) मौलाना अबुल कलाम आजाद → शिक्षा
12) सी. एच. भाभा → वाणिज्य
13) राजकुमारी अमृत कौर → स्वास्थ्य
14) डॉ० भीमराव अम्बेडकर → विधि

– : समाप्त : –

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top